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आलू /रामजी यादव

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जहां मैं जाता हूं वहीं देखता हूं तुम्‍हें
और मुझे अच्‍छे भी लगते हो तुम
उबले हुए भुने हुए और तले हुए भूरे-भूरे
लेकिन मैं इसके बावजूद तुम्‍हें सब्जियों का सितारा
तो नहीं कह सकता

तुम आज विश्‍वराजनीति के सबसे बड़े मुहरों में शामिल हो
साम्राज्‍यवाद के स्‍वास्‍थय और तुम्‍हारे भाव का अन्‍तर्संबंध
बहुत गहरा चुका है
बाजार में तुम्‍हारा भाव गिरता है
और किसानों के सपने चूर-चूर हो जाते हैं

न गोदाम हैं न बारदाने
कोठार के लायक नहीं हो तुम
खेत की जमीन पर जैसे-तैसे होते जाते हो इकटृठा
किसान की खुशी धुकधुकी में बदलने लगती है
कि खाद,बीज और पानी का दाम भी निकल पाएगा भला
मशक्‍कत तो मुफ्त ही हुई समझो
खेत का ब्‍याज नहीं जुड़ता पूंजीवाद में

तुम नहीं जानते कितनी हिकारत उगी हुई है तुम्‍हारे लिए संसार में
गुस्‍सा किसी का निकलता है तुम पर
गोया फलाने तो संस्‍कृति के आलू हैं
स्‍त्री विमर्श में ढेकाने की तरह तुम हर सब्‍जी में मौजूद हो

गरीब-गुरबा तो एक आलू पकाकर शोरबे में
काट देते हैं दिन
थके हुए श्रमिक आलू के चोखे में जरूरत से
ज्‍यादा मिर्च डालकर निकाल लेते हैं जरूरत भर रंगीनी
सिनेमा हाल के अंधेरे में प्रेमी बनने के फेर में पड़ा यह छोकरा
अंकल चिप्‍स ठूंस देता है लड़की के मुंह में
और कान के पास सरगोशियों में इल्तिजा करता है
मैं देखता हूं तुम विनम्र बना देते हो बड़े से बड़े तुर्रमों को
एक ही गोष्‍ठी में सभी चाव से खा लेते हैं समोसा
और डकार लेते हुए चाय की तलब होती है
तुम मौजूद हो हर जगह जैसे भाषा मौजूद रहती है
मगर गायब है तुम्‍हारा सम्‍मान जैसे भावनाएं गायब हों
मनुष्‍यों के बीच

मैं जानता हूं कौन गिराता है तुम्‍हारा भाव
किसने कम किया है तुम्‍हारा सम्‍मान
वे ही जिन्‍होंने दबाई है स्त्रियों की आजादी
जिन्‍होंने दलित बनाया है दुनिया की बड़ी आबादी को
उनके मुनाफे के अनुपात में रोज बढ़ती है
सर्वहाराओं की तादाद
उन्‍हीं के चेहरे की चमक के अनुपात में
फीकी पड़ती जाती है युवाओं की आंखों की रोशनी
कि जिनके लिए योग्‍यता और उम्‍मीद नहीं बची है धरती पर

सच तो यह है कि वे लूट और बर्बरता का जिरहबख्‍तर लगाए
नहीं जानते हैं आलू का उपयोग
वे केवल मुनाफे में बदल देना चाहते हैं तुम्‍हें
और चालें चलते हैं उठाने-गिराने की

लेकिन उग आए हो उनके दिमाग के नीचे के कोटरों में तुम
जैसे यथार्थ पर अग आते हैं मुहावरे
और उन्‍हें कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है
वे बदल देना चाहते हैं हर संवाद अंधेरे की भाषा में
वे नहीं जानते मनुष्‍यता के साथ तुम्‍हारा रिश्‍ता
इसलिए उनकी हर साजिश
तुम्‍हारी मौलिकता और उनके भय का प्रतीक बन चुकी है

वे नहीं जानते कि गेहूं की तरह जरूरी है आलू
वे नहीं जानते कि आलू भी उनकी कब्र खोदने में कर सकता है भागीदारी
कि वे यह तो कतई नहीं जानते कि गुरिल्‍ला दस्‍तों
और खुले आसमान के नीचे रात काटते लोगों के बीच
भाईचारा है आलू

दोनों तरसते हैं आलू के लिए
और आजादी का सपना देखते हैं।