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आलो बालो / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
रज्जो ने सज्जो के दोनों,
सज्जो ने रज्जो के दोनों,
पकड़े कान।
कान पकड़ कर लगी खेलने,
आलो बालो, आलो बालो।
आगे पीछे कान हिलाकर,
बोली मन के चना चबा लो।
सज्जो बोली कान छोड़ अब,
कानों की ले अब मत जान।
फिर खेलीं, फिर चाल बढ़ाई,
खिचने लगे ज़ोर से कान।
दर्द बढ़ा धीरे-धीरे तो,
फिर आई आफत में जान।
दोनों लगीं चीखने बोलीं,
धीरे कान खींच शैतान।
थके कान तो रज्जो बोली,
चलो खेल अब बंद करें।
कान छुड़ाकर सज्जों बोली,
कुछ मस्ती आनंद करें।
फिर दोनों ने उछल कूद कर,
खुशियों से भर दिया मकान।