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आल्हा छन्द में कविता — बिना पात कौ तरुवर सूनो / ध्रुव शुक्ल

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गाहक बिना बजरिया सूनी,
सूनी दौलत बिन व्यौपार ।
बिन आगी के चूलो सूनो,
सूनो बिन बिटिया घरबार ।

बिन पनहारी पनघट सूनो,
सूनी बिना चिरैया डार ।
चले बिना सब रस्ता सूनो,
सूनी रात बिना उजयार ।

बिना पात कौ तरुवर सूनो,
सूनो है पानी बिन ताल ।
बिना साँस सब दुनिया सूनी,
पञ्चों बिन सूनी चौपाल ।

बिन कान्धों की अरथी सूनी,
रूप बिना सूनो परकास ।
बिन हरयाए धरती सूनी,
सूनो बिन बातन आकास ।

बिन जोतें सब खेती सूनी,
सूनो खेती बिना समाज ।
बिना सुरों के साज हैं सूने,
सूनो है बिन बैद इलाज ।

बिन मूरत के मन्दिर सूनो,
करे बिना सब सूने काज ।
बिना राज के परजा सूनी,
सूनो बिन परजा के राज ।