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आवत केल खेल नहिं जानो / संत जूड़ीराम

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आवत केल खेल नहिं जानो।
करत केल तन मन धन राचौ हर बेहद सुभ-असुभ भुलानो।
खेलत खेल हार नहिं मन में देखत-देखत खाक समानो।
चार जुंग अर जुगन-जुगन लो फिर-फिर काल कर्म अरुझानो।
समझ न पड़ी वेद पढ़ थाके हेरत-हेरत जात हिरानो।
है सतसंग और गति नाहीं जूड़ीराम शबद पहचानो।