भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आवत रहीं तहरा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
Kavita Kosh से
आवत रहीं तहरा नाव का लगे
पार उतरे का आशा से।
बीचे राह में रोक के लेलस
तहरे नाम पर भाड़ा लोग।
घाट पहुँचली, बाकिर खाली,
कइसे उतरीं पार भला।
तहरा नाम पर करे वसूली
अइसन भारी डाँकू लोग
धन-त-धन प्रणो के नशे
सब कुछ छीने बंचक लोग
आज हम ओ सब बंचक लो के
चिन्हलीं ह भाई चिन्हलीं हँ
आज हम ओ सब बंचक लो के
असल भेस में देखलीं हँ।
हमरा के असहाय जान के
उहो लोग ढिठाइल ह
भेस ठगइती हटा-हट के
हमरा सनमुख आइल ह।
आजो ऊ सब बिना लाज के
बिना शरम के खाड़ा बा
आजो ढीठे राह रोक के
बीच राह में खाड़ा बा।
त हमरा प्रान में भरल दरिद्रता
छने भर में बिला जाई।