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आवरण / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
मैंने किताब तैयार की
अपना नाम लिखा
और आवरण पर चिपका दी
तुम्हारे माथे की बड़ी बिंदी
अब और कुछ करने की जरूरत नहीं रही
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