भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आवरण / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मैंने किताब तैयार की
अपना नाम लिखा
और आवरण पर चिपका दी
तुम्‍हारे माथे की बड़ी बिंदी

अब और कुछ करने की जरूरत नहीं रही
00