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आवाज़ देता है कोई उस पार... / सुधा ओम ढींगरा

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सुन सोहणी उसे,
उठा माटी का घड़ा,
तैर जाती है
चनाव के पानियों में,
मिलने अपने महिवाल को
खड़ा है जो नदी के उस पार...

सस्सी भटकती है थलों में
सूनी काली रातों में,
छोड़ गया था पुन्नू
सोती हुई सस्सी को,
पुन्नू -पुन्नू है पुकारती
शायद सुन ले उसकी आवाज़
खड़ा है जो मरू के उस पार...
फ़रहाद ने तोड़ा पहाड़
नदी दूध की निकालने,
शर्त प्यार की पूरी करने,
तड़प रहा है मिलने शीरीं से
पहुँच न पाया उस तक
खड़ी है जो पहाड़ों के उस पार...
साहिबा ने छोड़ा घर- बार
छोड़े भाई और परिवार,
भाग निकली मिर्ज़ा संग
गीत में हेक जब लगाई उसने
खड़ा है जो झाड़ियों के उस पार...
हीर पाजेब अपनी दबा
ओढ़नी से मुँह छुपा,
चुपके से मिलने निकल पड़ी
मधुर स्वर राँझे का जब उभरा
खड़ा है दूर जो घरों के उस पार...