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आवाज़ / केशव
Kavita Kosh से
तुमसे छोटा है
ईश्वर
या उसे छोटा करने के लिए
अपने मुँह में तुम
ब्रह्मांड दिखाने की
साजिश में हो मुब्तला
तुम्हारे मुँह में भले ही हो
ब्रह्मांड
पर मेरे मुँह में भी तो
है एक अदद
आवाज़
जिसे तुम्हारे कानों उँडेल
कर सकता हूँ मैं इंतज़ार
अपने अवतरित होने का
मैं
खड़ा हूँ अब भी
तुम्हारे सामने
अपनी आवाज़ पर
मेरे कन्धे
छीले ज़रूर है
तुम्हारे मुँह से तीर की तरह छूटती
अफवाहों ने
पर
झुके नहीं हैं
क्योंकि सत्य के लिए
हमेशा छोटा पड़ जाता है
तुम्हारा मुँह
पुर पायताने बैठे
ईश्वर की ओर
उठने से पहले ही
तुम्हारी आँखों में
उतर आता है मोतियाबिन्द
मुझे खुशी है
कि तुम
अपनी तमाम-तमाम
गुप्तचरी व्यस्था के बावजूद
ढूँढ नहीँ पाये हो
मेरी आवाज़ का स्रोत