भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आवाजों के खो जाने का दुख कितना / अनूप अशेष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आस-पास की आवाज़ों के खो जाने का
दुख कितना।
खालीपन कितना-कितना?

बाँस-वनों के साँय-साँय
सन्नाटों-सा
सब डूबा-डूबा,
खुद में होकर भी
जाने क्यों
बस्ती का मन ऊबा-ऊबा।

एक टेर थी नदी किनारे
गीला-मन
कितना-कितना?

यह आंतरिक प्रसंग
हुआ जाता
कुछ बाहर,
बूढ़ों से बच्चों तक जुड़ते
पेड़ों के रिश्ते
जैसे घर।

थोड़ी देर हवा का रुकना
काँपा तन
कितना-कितना?