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आवाज देकर छिप रहा वह साँवरा घनश्याम है / रंजना वर्मा

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आवाज दे कर छिप रहा वह साँवरा घनश्याम है।
त्रैलोक्य को जो मुग्ध करती छवि बड़ी अभिराम है॥

दे ही दिया सम्मान उसने मोर को अभिमान का
धुन प्यार की जो बाँसुरी टेरे उसी का काम है॥

लगता नहीं अब दिल कहीं बिन श्याम की आराधना
जब याद होती साथ उस की तब मिला आराम है॥

चारण स्वयं कर धेनु का आदर्श गोकुल का बने
ब्रज को बनाया स्वर्ग सम बैकुंठ गोकुल धाम है॥

समझे नहीं कोई भले ही किन्तु है यह सत्य ही
संसार होता कष्ट-हित जीवन सदा संग्राम है॥

पायी कभी यदि वेदना तब आँसुओं में रो दिये
था बीज जो बोया उसी का यह मिला परिणाम है॥

गीता सुना रणभूमि में कल्यान अर्जुन का किया
जो पथ दिखाता विश्व को श्रीकृष्ण उसका नाम है॥