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आवारा नहीं होता / अमित कुमार अम्बष्ट 'आमिली'

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कभी खुद पर भी
जरूरी हैं बंदिशें
बंद आंखों उफनते
हर तसव्वुर-ए-सैलाब का
किनारा नहीं होता,
कभी जो कोई लगे
बेहद अपना सा
फिर भी जरा फ़ासला रखना
ज़ख्म ए राज़दार अक्सर
सहारा नहीं होता,
आसमां का एक टुकड़ा
रखता हूँ मैं भी
अपने भीतर फिर भी
मेरे पाँव में फक़त छाले हैं,
फ़लक के हर क़तरे पर
सितारा नही होता,
अपने अपने सबके
ग़म के तहखाने हैं
अपने अपने सबके
सूरज के पैमाने हैं,
अधूरी राह जो
ठहरा है थक कर
वह शख्स हरदम ही
हारा नहीं होता,
जो पढ़ न सको मन
तो कभी आंखें ही पढ़ लो तुम
 हर वो जो उल्फ़त में करे सज़दा
आवारा नहीं होता