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आवारा सज़्दे / कैफ़ी आज़मी
Kavita Kosh से
ऐसा झोंका भी इक आया था के दिल बुझने लगा
तूने इस हाल में भी मुझको संभाले रक्खा
कुछ अंधेरे जो मिरे दम से मिले थे मुझको
आफ़रीं तुझ को, के नाम उनका उजाले रक्खा
मेरे ये सज़्दे जो आवारा भी बदनाम भी हैं
अपनी चौखट पे सजा ले जो तिरे काम के हों