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आवा बसन्तु छावा बसन्तु / पढ़ीस

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बउरे आँबन की डारन क्वयिली मदमहती<ref>मदमस्त</ref> बूँकयि लागी;
भँउरा फूलन का चूमि-चूमि झन्नायि उठे, भन्नाय लाग;
कटनासु बसन्ती ब्वालन पर गरगय्या ते अठिलायि लाग;
तुइ बड़ी चुवानि सयानि देखु,
आवा बसन्तु छावा बसन्तु!
कोई बनरा अस बना-ठना, जानउ जनवासे जाइ रहा,
जिरई चुन-गुन बिरवा किरवा तकु, बिहँसि उठे अगवानी का;
अधखिली कली कचनार, कुआँरी कन्या की आभा ओढ़े,
पूजयि लागीं, परिछयि लागीं,
आवा बसन्तु छावा बसन्तु!
फूलन की केसरि भरी बयारी, लपटि-लपटि लहँकयि<ref>तीव्र होना</ref> लागीं,
बेली फूलन के घूँघुट काढ़े, दुलहिन असि महकयि लागीं,
सहिंजन से हँसि-हँसि फूल झरयि, पछियउहा जब धक्का मारयि-
करूआ कस फूलि-फूलि गावयि,
आवा बसन्तु छावा बसन्तु!
दिनु अयिस मातदिल जान परयि, गरमी-सरदी का भेदु भूला,
स्वॅतियन<ref>वर्षा का नक्षत्र-‘स्वाती’</ref> का पानी जूड़-जूड़, चीख्ति मा कयिस नीक लागयि,
कथरी-गुदरी काने धरिकयि, चरवाह कंज गोली ख्यालयिं,
गंधरब<ref>गायन कला पारंगत -‘गंधर्व’</ref> अलापि बसन्तु रहे,
आवा बसन्तु छावा बसन्तु!
माह की उजेरी पाँचयि ते, डूँड़ि-डँगरिउ<ref>बिना पूँछ की दुबली-पतली</ref> कूदयि लागीं,
ह्वरिहार अरंडा गाड़ि-गाड़ि, फिर अण्टु-सण्टु अल्लायि लाग,
लरिका खुरपा के बेंटु अयिस, तउनउ कबीर चिल्लायि चले,
बाबा बुढ़वा बउरायि उठे,
आवा बसन्तु छावा बसन्तु!

शब्दार्थ
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