आवेसावतार / पतझड़ / श्रीउमेश
”पूर्न-अस-आवेस’ तीन छै, हरि के अवतारोॅ के रूप।
यही तीन अवतारोॅ सें दुर्जन के होय् छै अन्त अनूप॥
कृस्न छिलै पूर्नावतार-स्त्री राम छिलै असे अवतार।
परसुराम आवेस छिलै, कुछ काल तलक भगवत् संचार॥
नन्दी बाबा चरका ढाकर छेलै हमरा छाया तर।
आँा मुनो केॅ पागुर करिये रहलोॅ छेलै कटर-मटर॥
तखनी वै ढकरा में भेलै ‘आवेसोॅ के भाव असर।
मखरू मामू कॅे देखी ऊ कॉपेॅ लागलै थर-थर-थर॥
भीसन काल-कराल बनी केॅ, देखी लेलकै एक नजर।
पूँछ उठाय केॅ हुहुकी उठलै मखरू मामू के ऊपर॥
सींगोॅ पर लेलकै उठाय फेंकी देलकै ऊपर आकास।
लोकी लेलकै सोंगी पर मखरू के उड़लै होस-हवास॥
भेॅ गेलै नरसिंह रूप, नन्दी के तखनी महा कराल।
अँतड़ी-भोंटी निकलो ऐलै, धरती भेलै लाले-लाल॥
हमरै गाछी तर भेलोॅ छेलै मखरु मामू के अनत।
वायु-वेग सें घर-घर में फैली गेलै ई कथा तुरन्त।
जहाँ एक दिन हिरनाकुस-प्रह्लाद कथा के छेलोॅ लेख॥
यै ठाँ मखरु मामू मरलोॅ, देखोॅ रे करमों के रेख॥