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आव रे बादर, बरस रे पानी / ध्रुव कुमार वर्मा
Kavita Kosh से
नवा बहुरिया लाज मरत हे,
बिन जोड़ी के जीव जरत हे,
बपुरी काकर करा बतावय,
मन मां तोरे पावं परत हे।
तेहा जाके खबर बता दे,
तोर तो नइए जेठ-जेठानी॥1॥
ओरवाती हा चूहे ल धरही,
अऊ पानी मां फोटका परही।
तब कोनो हा भीजंत-टूटत,
दरवाजा मां आरो करही।
एकरे पाके खुल्ला हावय,
दरवाजा हा साझ बिहानी॥2॥
हाट बाट हा सुन्ना लागय,
अऊ हऊला हा उन्ना लागय,
कतको नवा लुगरा पहिरय
निच्चट जुन्ना-जुन्ना लागय।
कोनो ठट्ठा करय नहीं अब,
पानी भरके आवत खानी॥3॥
दीया के जब तेल सिराही,
अऊं आंखी ले नींद भगाही।
अकेल्ला में जागत जागत,
बैरी असन रात पहाही।
जिवरा करही धुकुर-धुकुर,
डर समाही आनी-बानी॥4॥