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आशाएँ / अभिमन्यु अनत

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जब दिन-दहाड़े
गाँव में प्रवेश कर
वह भेड़िया खूँख्वार
दोनों के उस पहले बच्चे को
खाकर चला गया
दिन तब रात बना रहा
गाँव के लोग दरवाज़े बंद किए
रहे रो-धोकर अकेले में
एक दूसरे को दूसरे से
आश्वासन मिला ।
कोई बात नहीं अभी तो पड़ी है ज़िन्दगी
जन्मा लेंगे हम बच्चे कई
झाड़ियों के बीच पैने कानों से
एक दूसरे भेड़िये ने यह सुना
अपनी लंबी जीभ लपलपाता रहा ।