भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आशाएँ / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
Kavita Kosh से
यहाँ आशाएँ हैं
पृथ्वी से उष्मा
बीज से कोंपल
कोंपल से फुनगी तक
अनविरोध सिलसिले की
नथुनों से सोंधी महक
पेट भर रोटी की
रिसते घावों पर फाहों की
मौत से बेहतर जीवन की
आशाएँ हैं यहाँ
यहाँ आदमी पर
आदमी के भरोसे की आशाएँ हैं
आशाओं की उँगली थामे
क़दम-दर-क़दम
संतुलित हो रहा है बच्चा
वहाँ आशाएँ हैं
आशाओं के ग़बन की
आशाओं के हनन की
मोर्चे पर मोर्चा
थाम रही हैं आशाएँ.