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आशावाद / नाज़िम हिक़मत
Kavita Kosh से
कविताएँ लिखता हूँ मैं
वे छप नहीं पातीं
लेकिन छपेंगी वे।
मैं इन्तज़ार कर रहा हूँ ख़ुश-ख़ैरियत भरे ख़त का
शायद वो उसी दिन पहुँचे जिस दिन मेरी मौत हो
लेकिन लाजिम है कि वो आएगा।
दुनिया पर सरकारों और पैसे की नहीं
बल्कि अवाम की हुकूमत होगी
अब से सौ साल बाद ही सही
लेकिन ये होगा ज़रूर।
अंग्रेज़ी से अनुवाद : दिगम्बर