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आशा आशा मरे / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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आशा आशा मरे
लोग देश के हरे!
देख पड़ा है जहाँ,
सभी झूठ है वहाँ,
भूख-प्यास सत्य,
होंठ सूख रहे हैं अरे!
आस कहाँ से बंधे?
सांस कहाँ से सधे?
एक एक दास,
मनस्काम कहाँ से सरे?
रूप-नाम हैं नहीं,
कौन काम तो सही?
मही-गगन एक,
कौन पैर तो यहाँ धरे?