भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आशा के बीज / रश्मि विभा त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
मेरे लिए तो
कठिन था झेलना
ये समय का शाप,
जो एक दिन
अचानक मुझसे
मिले न होते आप!
2
जो कहने को-
जन्म से थे अपने
मरता छोड़ गए
तुम कौन हो?
जिसकी बदौलत
जिए मेरे सपने!!
3
वे जो गए हैं
देके पीठ पे घाव!
पड़ने नहीं देते
तुम जरा- सा
मेरे जी पे दबाव
तो किसे दूँगी भाव?
4
दिखाई दिया
मुझे तेरे मन का
साफ- स्वच्छ दर्पण
इसी कारण
तेरे सामने हुआ
ये आत्मसमर्पण!!
5
आशा के बीज
मेरी आँखों में बोए
तूने सौंप दी मुझे
भरकरके
मुस्कान की गागर
जो छलके, भिगोए!!
6
आँखों में गड़ा
जब- जब भी काँच
चटके सपनों का
तुमने भरी
आशा तब मुझमें
आने नहीं दी आँच!
7
तुझे पाकर
मुझे बरसों बाद
जो मिला है आह्लाद!
सच में पाया
तेरे रूप में मीत
ईश्वर का प्रसाद!!
8
दुआ के बीज
प्रणय बो रहा है
तो बेबस बनके
दुर्भाग्य आज
मारकर दहाड़ें
खुद ही रो रहा है!
9
दुख की आज
उल्टी पड़ गई है
सारी की सारी चाल
उसे क्या पता!
मेरे पास मीत के
आशीषों की है ढाल!!
10
तम के आगे
मान ही लेती हार
अगर मीत तुम
चुपचाप- से
ये धूप का टुकड़ा
धर न जाते द्वार।
11
कोरा जीवन
कोई नहीं था रंग
और तुम आ गए
प्रेम का प्रिज्म
इंद्रधनुष- सी है
आज मेरी उमंग।