कहिया सें टेरै छी रसता
चौंके छी हर आहट पर,
देखी केॅ हुनका तड़पी उठलां
व्याकुल मन सिसकी उठलै।
सूनापन हमरा खलेॅ छै
पागलपन हमरोॅ बढ़ै छै,
बार-बार मन ई हमरोॅ
देखी केॅ तोरा सिहरै छै।
तोरोॅ पावन चरणोॅ के पड़थैं
आलोड़ित होय छै हमरोॅ कण-कण,
तोंय गीत बनोॅ हम्में सुनबैया
आबी सुरभित करि दे हमरोॅ तन-मन।
काँटा के पथ पर छी हम्में
बालू के कण-कण पर हम्में,
लहर-लहर पर छहरौं हम्में
आवोॅ आशा द्वारी पर खाड़ोॅ हम्में।