आशा / शिवदेव शर्मा 'पथिक'
आशा पर संसार टिका है सच मानो, सच बोल रहा हूँ,
जग आशा में, आशा जग में, भेद हृदय के खोल रहा हूँ,
कहाँ अछूता है वह प्राणी जगी न जिसमें कभी पिपासा?
प्यासे उर की धड़कन तुमको बुला रही है पगली आशा!
व्यथा सहनकर भी शिशुओं को पाल रही क्यों उनकी माता?
जीवन-द्रोणी भटक रही है तट पाने की ले अभिलाषा!
पिया-मिलन की ही आशा में पिया-पिया चातक रटता है,
चंचरीक का अधर कली से कुछ पाने को ही सटता है!
पतझड़-ममर में कोयल की तृष्णा जगी हुई होती है,
नव-वसन्त की बाट जोहने में ही लगी हुई होती है,
आशा की पतवार न हो तो यह भवसागर पार न होगा,
पतझड़ में द्रुम गिर जायें तो फिर उनका श्रृंगार न होगा,
घोर निराशा की बदली में आशा की बिजली आती है,
हाये! चाँद को ढूँढ़ चकोरी आस जगाये रह जाती है,
राम तपोवन में रमते हैं आह! भरत बिल्कुल प्यासा है,
रोती है माणडवी हाये रे! कैसी यह अद्भुत आशा है?
इधर राम को देख! तपोवन सूना-सूना सा लगता है,
आशा है बस पिया मिलन की, लखन वेदना से ढ़हता है,
उधर यशोदा के प्राणों में पीड़ा अगम-अपार देख लो!
विरहन राधा ढूँढ़ रही है बीती हुई बहार देख लो!
देखो! दीवानी मीरा में पायल की झनकार देख लो!
युग का सोया प्यार देख लो- आशा का विस्तार देख लो!
सुख में-दुख में सब में तुम हो, आशे! आशे! कहाँ नहीं हो?
जिस दिन आशा चली जायगी, सृजन थिरकता वहाँ नहीं हो?
मरणासन्न मनुज रटता है- पानी दे दो! पानी दे दो!
स्वतंत्रता की अभिलाषा में वीरों की क़ुर्बानी देखो!
सूर्यदेव आयेंगे नभ में सूर्यमुखी की अभिलाषा है
जड़-चेतन के मन-मन्दिर में सोई कैसी मधु आशा है!
कल्पवृक्ष की कली चली आ! आज तुम्हारा अभिनन्दन है,
पड़े न इनके बन्धन ढ़ीले, यह साँसों का स्पन्दन है!
मेरी कोमल आशा आओ! कभी निराशा तुझे न पाये
तीव्र-तुषार शिशिर के पाकर नहीं कमलिनी प्राण गवाये
आशाओं का नाम जगत है, एक इसी पर जग चलता है,
घोर निराशा की छाती पर आशा का दीपक जलता है!
तजे युगों से प्राण विश्व ने आशा नहीं तजी जाती है,
महल, कुटी, बंजर जीवन में, पायल बनी बजी जाती है!
श्रान्त प्राण की तपन-जलन पर स्नेह सुधा बरसा दो आशे
जीवन की तम-पूर्ण डगर पर जग-मग दीप जला दो आशे
आज धरा के रन्ध्र-रन्ध्र में मधुर हास बिखरा दो आशा
चूमूँ कहाँ कपोल तुम्हारे?...अयि! मेरे जीवन की भाषा