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आशिक़ तो नामुराद हैं पर इस क़दर कि हम / सौदा

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आशिक़ तो नामुराद हैं पर इस क़दर कि हम
दिल को गवाँ के बैठे रहे सब्र करके हम

कहता था कल किसू से करूँगा किसी को क़त्ल
इतना तो कुश्तनी<ref>मारने योग्य</ref> नहीं कोई मगर कि हम

देखें तो किसकी चश्म<ref>आँख </ref> से गिरता है लख़्ते-दिल<ref>दिल का टुकड़ा</ref>
तू इस तरह से रो सके ऐ अब्रे-तर<ref>भीगा बादल </ref> कि हम

बैठा न कोई छाँव, न पाया किसी ने फल
बे-बर्गो-बर<ref>पत्तों और फलों से रहित</ref> नहीं कोई ऐसा शजर<ref>पेड़</ref> कि हम

क़ासिद<ref>संदेशवाहक</ref> के साथ चलते हैं यूँ कहके मेरे अश्क
देखें तो पहले तू पहुँचे है तू नामाबर<ref>पत्रवाहक</ref> कि हम

इतना कहाँ है सोज़तलब<ref>आग का इच्छुक</ref> दिल पतंग<ref>पतंगा</ref>का
रखती नहीं है शमा भी ऐसा जिगर कि हम

'सौदा' न कहते थे कि किसी को तू दिल न दे
रुसवा<ref>बदनाम</ref> हुआ फिरे है तू अब दर-ब-दर कि हम

शब्दार्थ:

शब्दार्थ
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