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आशियाँ उजड़े तो बुलबुल ने बहाये आँसू / साग़र पालमपुरी

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आशियाँ उजड़े तो बुलबुल ने बहाये आँसू
हम भी उजड़े मगर आँखों में न आँसू

दीदा—ओ—दिल तो तेरी याद से रौशन थे मगर
हम ने फिर भी शब—ए—फ़ुर्क़त में बहाये आँसू

शाम ढलते ही वो जल उठ्ठे चरागों की तरह
हमने जो पलकों की चौखट पे सजाये आँसू

काश इस दौर में ऐसा कोई इन्सान भी हो!
अपनी आँखों में समो ले जो पराये आँसू

हम अगर रोयें तो उसको न हँसी आ जाये
इसलिए हमने ज़माने से छुपाये आँसू

इस जहाँ वालों ने जिस शख़्स को
उसकी हर साँस में हमको नज़र आये आँसू

हो गई उनसे मुलाक़ात हमारी इक दिन
देखते ही उन्हें बेबस निकल आये आँसू

उनकी राहों के उजाले के लिए ही ‘साग़र’!
रात भर हमने चराग़ों में जलाए आँसू.