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आशीष दे रही माँ / प्रेमलता त्रिपाठी
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					आशीष दे रही माँ दिन हो रहा सुहाना। 
दिक्पाल छंद से है मुझको पटल सजाना। 
ज्यों लालिमा बिछाकर, सूरज दिशा सजाये, 
त्यों अंध को मिटाकर, हमको कदम बढ़ाना। 
उर ज्ञान से सजाएँ, अज्ञानता मिटा कर, 
जीवन सुधा मिलेंगी, उसको गले लगाना। 
रक्षा करो बहन की, रख लाज पर्व राखी, 
भाई कहा तुम्हें है, उसको नहीं लजाना। 
अर्पित करें जगत को, जो प्रीत पावना हो, 
बनकर रहे भिखारी, मन प्रेम का दिवाना।
	
	