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आशीष / नरेन्द्र शर्मा
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चूमूँ भाल तुम्हारा!
रानी, चूमूँ भाल तुम्हारा,
हो आशीष-विचुम्बित मस्तक पर अंकित शुचि उशना तारक,
रहे सुहाग-भाग से दीपित उज्जवल वह तारक युग युग तक!
संचित सब शुभ आकांक्षायें अर्चन करें तुम्हारा!
तुम पर, ओ मेरे मन-भावन बार बार बलि जायें लोचन;
आधि-व्याधि अपने पर ले लूँ,दृष्टि दोष को बनूँ आवरण!
बने पराग राग उर का, हो सुखप्रद पंथ तुम्हारा!
हाँ, वैसे तो निपट अकिंचन, पर मेरा भी प्रेमी का मन!
मन-सिंहासन पर जब तक तुम, निर्धन कैसे कहूँ, हृदय-धन!
क्यों मेरी सम्राज्ञि! लाज से आनत माथ तुम्हारा!
है विक्षिप्त तरंगित सागर--उर में कैसे भाव दिये भर!
और मथो तुम, ओ पाषाणी, निकले एक और मणि सुन्दर!
मानिनि! ऐसी चुम्बन-मणि से हो अभिषेक तुम्हारा!
रानी, चूमूँ भाल तुम्हारा,