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आश्चर्य में हो तुम? / प्रीति 'अज्ञात'

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आश्चर्य में हो तुम?
मूर्खता की पराकाष्ठा
या विशुद्ध भ्रम
कि आँखों पर बंधी पट्टी देख
कोस रहे हो व्यवस्था को
ये अद्भुत 'व्यवस्था' अंधी नहीं
बल्कि एक क्रूर- सुनियोजित
षड़यंत्र है उस अंतर्दृष्टि का
जो महलों में निर्भीक विचरते
संपोलों के भविष्य की सुरक्षा को
मद्देनज़र रख
सदियों से रही आशंकित
 
वही संपोले जिनके जन्मदाता ने
दे रखा उन्हें आश्वासन
उनके हर जघन्य कृत्य को
बचपने की पोटली में
लपेट देने का
'वो' हैं आज भी उतने ही
निडर, बेलगाम, सुरक्षित
शोषण करने को मुक्त

बालिग़ और नाबालिग़
हास्यास्पद शब्द भर रह गए
जिनका एकमात्र प्रयोग
वोट डालने औ' घड़ियाली आँसू बहाने की
पारम्परिक सुविधा के अतिरिक्त
और कुछ भी नहीं
वरना हर वयस्क अपराधी
क़ैद होता सलाख़ों के पीछे

दरअसल 'देव-तुल्य' हैं
कुछ मुखौटेधारी
और विवश जनता को देना होता है
अपनी आस्था और आस्तिकता का प्रमाण
कि सुरक्षित बने रहने की उम्मीद में
अब भी यहाँ
'नाग-देवता' की पूजा होती है!