आश्वस्ति / अशोक कुमार पाण्डेय
तुम चाँद ख़रीद लोगे
तो बची रहेगी तुम्हारे भीतर सूरज से महरूमियत की कसक
उत्तर दिशा का सबसे चमकदार तारा तुम्हारी मुंडेर पर जड़ दिया गया तो
कितने ही तारों की टिमटिमाती रौशनी तड़पायेगी तुम्हें
गौरैया की आवाज़ अगर तुम्हारी ही धुन पर गाने लगे किसी रोज़
कितने ही पक्षी बेआवाज़ भटकेंगे तुम्हारे सपनों में
कितना बौना होगा पड़ोसियों की ईर्ष्या भर का सुख
कितना अकेला होगा पड़ोसियों से ईर्ष्या भर का दुःख
एक आवाज़ कहीं दूर से आती हुई जिस दिन नहीं पूछेगी हाल
दुनिया का सबसे मंहगा फोन भी उस दिन ठंढी लाश सा पड़ा रहेगा जेबों में
जिस दिन नहीं होगा कोई हाथ हाथों में बिना शर्त
दुनिया की सारी ख़ूबसूरती मुह बिरायेगी ....
बहुत बुरी है दुनिया
इतनी बुरी की रोज़ कोई करता भविष्यवाणी इसके ख़त्म होने की
शुक्र है फिर भी
कि अब तक बिकाऊ नहीं चाँद, सूरज, कुछ धुनें आदिम और तुम्हारा प्यार