Last modified on 24 मार्च 2010, at 17:22

आसमाँ से सुबह जब उतर आएगी / विनोद तिवारी

आसमाँ से सुबह जब उतर आएगी
ये है तय हर तरफ़ रौशनी छाएगी

तारे बन जाएँगे सारे कण ओस के
रात हरियालियों में सिमट जाएगी

गुदगुदाएगी शीतल समीरण हमें
ख़ुश्बुओं के तरानों से बहलाएगी

होंगे फूलों भरे वाटिका वन सघन
कल जिधर भी जहाँ तक नज़र जाएगी

दिन नया देगा मन-प्राण को ताज़गी
ज़िन्दगी चैन के चार पल पाएगी