आसमां तक उड़ रहा रंगों गुलाल होली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
आसमां तक उड़ रहा रंगों गुलाल होली है
उम्र सबकी जो गई फिर सोलह साल होली है।
पूर्णिमा की रात है पसरी बखूब आंगन में
हो सके रखिये ज़रा इसका ख़याल होली में।
डाल, पत्ती, फूल, कलियाँ बेलगाम सब झूमें
लहलहाए ठूंठ सारे मालामाल होली में।
ले गई चुम्बन लपक कर गोल गोल वो चरखी
दे गई कितनी खुशी, ये बेमिसाल होली है।
कहकशां आई उतर ले माहताब कांधे पर
आप भी दिखलाइये अपना कमाल, होली है।
थी नहीं आसां कभी राहों में बात भी जिनसे
पड़ रही उनके गले बाहों की माल होली है।
रह न पाई एक भी रंजिश कमान पर बैठी
धुल गये रंग में सभी दिल के मलाल होली है।
रह न पाए पर्व पर कोई उदास बस्ती में
आओ कर दें, गाल सबके, लालो-लाल होली है।
हो रही 'विश्वास' है आंखों से बात आंखों की
आप अब पूछें नहीं कोई सवाल होली है।