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आसमानों से अकड़कर ये ज़मीं गर देखना / सूरज राय 'सूरज'

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आसमानों से अकड़कर ये ज़मीं गर देखना।
मशवरा इतना-सा है बेहद सम्हलकर देखना॥

आपके दिल की तरह छोटी-सी है चौखट मेरी
बस कहीं टकरा न जाए आपका सर देखना॥

तुम हंसी की बात करते हो, कई ऐसे भी हैं
अश्क भी जिनको नहीं होते मयस्सर देखना॥

क़ब्र हो सकती है छोटी या बड़ी शमशान में
जिस्म से सारे ही निकलेंगे बराबर देखना॥

हर हंसी के सैंकड़ों चाबुक उभरते जिस्म में
किस क़दर तन्हाई में रोते हैं जोकर देखना॥

हाँ मेरा क़ातिल है कोई अजनबी सच है, मगर
ये तो तय है भाई का निकलेगा ख़ंजर देखना॥

तुम उसे तलवों से आगे देख ही पाए नहीं
आसमां के ताज पर अटका मेरा पर देखना॥

फोन पर तो माँ हमेशा ख़ुश ही लगती है तुम्हें
पर बड़े भैया कभी चुपचाप आकर देखना॥

जब अदालत में नमक की ज़िंदगी नापेगी क़द
एक आँसू से बहुत बौना समन्दर देखना॥

ज़ालिमों के कान में बेबस हवा ये कह गई
जल्द ही लौटूंगी मैं बन कर बवंडर देखना॥

शाम के "सूरज" ने सबको डस लिया है साज़िशन
साए का सच गर कभी होगा उजागर देखना॥