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आसमान में चीलें उड़तीं / नईम
Kavita Kosh से
आसमान में चीलें उड़तीं
पानी आएगा।
चिड़ियाँ धूल नहाती नन्ही-
पथ भूले बादल,
पनिहारिन घाटों जा बैठी-
ये पूरी बाखल;
बड़ी बूढ़ियाँ भीतर कुढ़तीं-
पानी आएगा।
दूर कहीं से सौंधी-सौंधी-
गंध प्रिया आई,
पास कहीं पर भीगे स्वर ने-
फिर कजरी गाई;
यौवनभार डालियाँ मुड़तीं-
पानी आएगा।
धरापुत्रियाँ लिए कलेऊ-
मेंड़-मेंड़ जातीं,
चटख़ रंग, लहँगे चूनर के
आँखें सहलातीं;
पड़ी दरारें पीकों जुड़तीं,
पानी आएगा।