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आसान कहां होता है/ राजेश चड्ढा

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यूं लगा
जैसे तुम्हारी मौहब्बत
तेज़ बारिश की तरह
बहुत देर तक
मुझ पर बरसती रही
और जुदाई में
तुम्हारी-मेरी
या
थोड़ी तुम्हारी-थोड़ी मेरी
बेवफ़ाई की हवा ने
उसे हम पर से
यूं खत्म कर दिया
जैसे बरसात के बाद
पेड़ों के पत्तों पर ठहरी
पानी की बूंदें
उसी बरसाती हवा की वजह से
कतरा-कतरा छिटक कर
ज़मीन की मिट्टी में
यूं समा जाएं
कि बरसात के निशान तक न रहें
लेकिन
मैं
ये भी तय नहीं कर पाया
कि उस बेवफ़ाई की हवा का गुनाहगार
मैं हूं या तुम
सच है
मौहब्बत जब हद से बढ़ कर हो
तो इल्ज़ाम देना
आसान कहां होता है ?