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आसारों में पानी डाल / राम सेंगर
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ऊबे-ऊबे
डूबे मन को
यादों के कुण्ड से निकाल ।
घाव कहीं फिर कोई
हरा हो न जाए ।
रखना बेहाली को
काँख में दबाए ।
आग अभी
तुझमें बाक़ी है
आसारों में, पानी डाल ।
मरघट में रात गए
सपने का शव ले ।
घुटनों में माथ दिए
बैठा क्यों पगले ।
आशय के
लटके छप्पर को
थूनी की टेक से सम्भाल ।
माथे की फूली नस
दाबे रह भाई ।
चहकेगी कल तेरी
गूँगी शहनाई ।
मुट्ठी में भर
उतरे छिलके
खुले आसमान में उछाल ।
सीढ़ी-बैसाखी का
दम भी क्या दम है ।
अपनी पहचान बचा
तू किससे कम है ।
बने नहीं साँचे
तुझ लायक
मत इनमें छवियों को ढाल ।