भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस्था - 11 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इसलिये मानव
यह भूल न कर लेना
मानवता को ही बना मूर्ख
भगवान की आँख में
कभी धूल झोंक पाएगा
क्योंकि भगवान ने
इस धरा पर
मानवता की रचना की थी
न कि स्वार्थी मानव की।

यह तो माँ-मानवता की कृपा है
कि मुझे आज मानव के रूप में
भगवान का एक पुत्र
कहलाने का सौभाग्य प्राप्त है
फिर मैं क्यों शब्दों में
स्वार्थ का जहर घोलूं
और अपनी प्रार्थना को
एक मात्र
बोलचाल का चोला पहनाऊँ।