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आस्था - 34 / हरबिन्दर सिंह गिल

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अब तुम पूछना चाहोगे
यह माँ-मानवता कौन है
जिसके बारे में
इतना लिखना चाहता हूँ।

शायद इसका संपूर्ण उत्तर
मेरे पास भी नहीं है
क्योंकि
इसकी धूमिल छवि
कहीं बादलों के पीछे है
और यही
धुंधली सी तस्वीर
मेरी प्रेरणा है
जिसकी मदद से
कल्पना की दुनियाँ को
इस धरती पर
ले जाना चाहता हूँ
जहाँ मानवता
सीमित सीमाओं में
न रह जाए, बंद होकर।

इसी धरती पर
मेरी धूमिल कल्पना
चारों तरफ चमकेगी
और कृत्रिम बादलों की छाया
लुप्त होकर रह जायेगी
मानवता के तेज के समक्ष।