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आस्था - 35 / हरबिन्दर सिंह गिल

मैं माँ-मानवता से
कल्पना की दुनिया में
कुछ सुःख-दुःख करना चाहता था सांझा
परंतु दुविधा में पड़ गया
कैसे कराऊं
परिचय अपना।

क्या मुझे कहना चाहिये
मैं विशेष देश का वासी हूँ
या फिर
किसी विशेष जाति का प्रतीक हूँ
या फिर
किसी विशेष धर्म का अनुयायी हूँ?
यह सब परिचय
पर्याप्त होगा
माँ-मानवता को
बोध करा देने के लिये
कि मानव
जिसके स्वयं के हाथों में
हैं हथकड़ियां
समाज के
इतने सारे बंधनों की
कैसे करा सकेगा
मुक्त मुझे
राष्ट्रीय सीमाओं के जाल से।