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आस्था - 37 / हरबिन्दर सिंह गिल
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मेरी कल्पना की दुनियाँ में
मैं उस समय
सबसे अधिक कष्टमय
स्थिति में आ गया
जब इस बात का
नहीं ले पा रहा था, निर्णय
कि मैं अपनी माँ-मानवता को
किस रूप में
अभिव्यक्त करूं, सत्कार अपना।
यह इसलिये हुआ
आदर इस भौतिक युग में
औपचारिकताओं के अंधेरे में
छुप गया है
और भावनात्मक लगाव
बेमोत मर रहा है।
हाँ अगर
किसी वास्तविकता को
नकारना हो
तो यह कह देना
काफी होगा
अनसुना कर दो
यह तो
भावुकता में बोल रहा है।