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आस्था - 50 / हरबिन्दर सिंह गिल
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विभिन्न वर्गों में बटा समाज
क्या कभी तोड़ पाएगा ये सीमाएँ
एक ऐसे प्रश्न को
दिया है जन्म
जो बन रहा है कारण
समाज के कलंक का।
न ही सीमाओं को मिटाना
न ही धर्मों को आपस में मिलाना
मानव कभी कर पाया है
न कभी कर सकेगा
क्योंकि वह ऐसे किसी भी प्रयत्न को
जो स्वार्थों पर करता हो वार
संस्कृति और मातृभूमि के नाम पर
एक ही ठोकर में कर देना चाहता है
चूर-चूर
ठोकर भी इतनी कठोर कि
पत्थर से भी फूट धारा
खून ही खून बहने लगे चारों ओर
शायद पानी कहीं सूर्य की किरणों से
भाप बनकर उड़ न जाए
धरती के खून से सींच देना चाहता है।