भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस्था - 65 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूछ कर तो देखा होता
क्या गुजरती है
माली के दिल पर
जब उजड़ता है
हँसता खेलता गुलशन।

भगवान ने तो
बनाई थी यह प्रकृति
जहाँ मानवता
बन परी
कर सके विचरण
अपने ही बच्चों में।

परंतु उसे
क्या था मालूम
मानव की संकुचित आस्था
ममता को ही
कर दूषित
कर देगी दूभर
माली का जीना ही।