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आस्था - 65 / हरबिन्दर सिंह गिल
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पूछ कर तो देखा होता
क्या गुजरती है
माली के दिल पर
जब उजड़ता है
हँसता खेलता गुलशन।
भगवान ने तो
बनाई थी यह प्रकृति
जहाँ मानवता
बन परी
कर सके विचरण
अपने ही बच्चों में।
परंतु उसे
क्या था मालूम
मानव की संकुचित आस्था
ममता को ही
कर दूषित
कर देगी दूभर
माली का जीना ही।