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आस्था - 66 / हरबिन्दर सिंह गिल

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मानव
इस विज्ञान की दुनिया में
कितना मूर्ख है
नहीं था मालूम
क्योंकि
वह अनभिज्ञ है
उस दुष्प्रभाव से
जो
मानवता के गर्भ में
पल रहे
शिशु पर पड़ रहा है
अपनी ही
संकुचित आस्था के कारण
और आगन्तुक का विकास
थमकर
रह गया है।

डर है
कहीं वह इतना
संकुचित
न हो जाए
गर्भ उसे
धारण करने से ही
कर दे, इन्कार।