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आस्था - 67 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
मानव कितना
अन्जान है
अपना इतिहास बनाने
की चाह में
मानवता को
इतिहास के पन्नों में
लुप्त
कर देना चाहता है।
परंतु
वह भूल रहा है
इतिहास कभी भी
माफ नहीं करता
जो करता है
खिलवाड़ माँ से
क्योंकि वहाँ
जिस गोद में
खेलकर
हुआ है बड़ा
उसके
दामन को ही
चला है करने कलंकित।