भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आस्था - 69 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
क्योंकि
पहनावे के नाम
पर बंटा हुआ समाज
एक दूसरे को
शंका की निगाहों से
घूर रहा है
और असहाय
होकर रह गई है
अजर-अमर आत्मा
नाशवान शरीर के
झूठे पहनावों
के सीखचों के पीछे।