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आस्था - 72 / हरबिन्दर सिंह गिल

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कितना होगा
सुहावना वो दिन
जब मानव
मानवता की कृतज्ञता को
कर पायेगा स्वीकार
अन्यथा
भगवान के द्वार तक
पहुंचने वाली
हर सीढी पर
वह पीछे
छोड़ता चला जाएगा
कीचड़ भरे
अपने कदमों के निशान
और हाथ में
लिया हुआ
पूजा का सामान
अशुद्ध होकर रह जाएगा
क्योंकि श्रद्धा और स्वार्थ के
मिश्रित भाव से
कभी किसी प्रार्थना ने
जन्म नहीं लिया है।