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आस्था - 74 / हरबिन्दर सिंह गिल

काश मानव समझ सकता
पत्थर जब
आग में झुलसता है
तपकर फटता है, हमेशा।

उसकी सिसकियां
सुनाई नहीं देतीं
सिर्फ धमाका होता है
जब फूटता है, तपकर वो।

मानव की याददाश्त
कितनी कमजोर है
इतनी जल्दी भूल गया है
जो हुआ था, धमाका
हिरोशिमा और नागासाकी में।