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आस का पंछी कभी हम/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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आस का पंछी कभी हम, क़ैद में रहने न देंगे ।

वे हमें जीने न देंगे,
वे हमें मरने न देंगे,
हो गये बेदर्द इतने,
अब हमें रहने न देंगे,
किन्तु अपने पग कभी हम, लक्ष्य से हटने न देंगे ।
 
वे हमें बढने न देंगे,
पर कभी लड़ने न देंगे,
कंटकों के बीज बोकर,
वे हमें चलने न देंगे,
किन्तु हम भी कल्पनाओं, के किले ढहने न देंगे ।
 
मन पले अरमान जो,
परवान वे चढ़ने न देंगे,
ज़िंदगी के लक्ष्य पूरे,
वे हमें करने न देंगे,
किन्तु हम कभी कामनाओं, को कभी मरने न देंगे ।

वे अभावों में घुटन की,
बात को कहने न देंगे,
ज़िंदगी भर रोशनी में,
वे हमें रहने न देंगे,
किन्तु हम भी दीपकों को, अब कभी बुझने न देंगे ।