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आस का सूरज / आशुतोष सिंह 'साक्षी'
Kavita Kosh से
वो दूर डूबता हुआ सूरज
कुछ कहना चाहता है हमसे।
कि सुख दुःख आते जाते हैं
मेरी तरह
फिर भी अपना कर्म तुम,
छोड़ना नहीं हरगिज़
मेरी तरह।
लाख रोकना चाहें तुम्हें
बाधाओं के बादल कई।
चीर कर उनको पार निकल आना तुम
मेरी तरह।
छंट जाएँगे कुछ समय में
ये हताशा के कोहरे
सिर्फ अपने पथ पर
तुम बढ़ते रहना
मेरी तरह।
सूख जाएँगे थोड़ी देर में,
ये निराशा के कीचड़।
बस आशाओं की धूप
देते रहना तुम
मेरी तरह।
वो दूर डूबता हुआ सूरज
कुछ कहना चाहता है हमसे।
कि सुख दुःख आते जाते हैं
मेरी तरह
फिर भी अपना कर्म तुम,
छोड़ना नहीं हरगिज़
मेरी तरह।