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आस पिया के / परमानंद ‘प्रेमी’

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आमों फुललै हे, गहूम गदरैलै फूलै चम्पा कलि।
जिया हमरऽ भेलै उदास दोनों आँखी नीर ढरि॥

बाटें भेटिये गेलऽ, एक बटोही हाथें बेंत छड़ी।
पुछै खाड़ी कैन्ह’ अकेली दोनों आँखी नीर ढरि॥

फागुन महीना हे मस्त महीना सभ्भे मस्त रहे।
हमरऽ पिया गेलै बिदेश यही लेली नीर ढरि॥

देभौं तोरा गोरी हे हाथें बाली माँग मोती भरी।
छोडऽ बिहौवा के आस चलऽ गोरी हमरऽ गली॥

अगिया लैगैभौं हे तोरऽ गली आरो मोती बाली।
ऐतै बिहौवा लेलें हार तोरा मुँहें मोढ़ी लगी॥