भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आस होगी न आसरा होगा / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
आस होगी न आसरा होगा
आने वाले दिनों में क्या होगा
मैं तुझे भूल जाऊँगा इक दिन
वक़्त सब कुछ बदल चुका होगा
नाम हम ने लिखा था आँखों में
आँसुओं ने मिटा दिया होगा
आसमाँ भर गया परिंदों से
पेड़ कोई हरा गिरा होगा
कितना दुश्वार<ref>कठिन</ref> था सफ़र उस का
वो सर-ए-शाम<ref>शाम होते ही</ref> सो गया होगा
शब्दार्थ
<references/>