भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आस / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
बहुत कुछ कह लेने के बाद
बहुत कुछ कह लेने की
आस रही
आस कभी पूरी नहीं हुई
बहुत कुछ कह लेने पर
जो रह जाता है शेष
वही कविता बन जाता है